171 उपवास की तपस्या पूर्ण की विराग मुनि जी

दुर्ग//बालाघाट की पुण्य धारा में तपचक्रवर्ती की पदवी से अलंकृत संत आज विराग मुनि जी 171 उपवास की तपस्या पूर्ण करते हुए चार भाग्यशाली श्रावक भाइयों के यहां आहार ग्रहण कर अपना उपवास का संकल्प आज पूर्ण किया दिन चार परिवारों के प्रमुख लोगों ने आहार दान करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ उन सभी परिवार के सदस्यों ने जैन धर्म का चौथ व्रत आजीवन ब्रह्मचर्य का गुरुदेव के सानिध्य में व्रत ग्रहण किया और इस दरमियान जिन-जिन श्रावक श्राविकाओं ने आहार दान किया उन सभी ने किसी न किसी संकल्प के साथ गुरु भगवंत को आहार दान करने का लाभ लिया
किसी ने आजीवन रात्रि भोजन का त्याग किसी ने जमीकंद का त्याग किसी ने इस तरह हर किसी ने किसी न किसी संकल्प के साथ आहार दान किया
आज भव्य आध्यात्मिक वातावरण में तप त्याग की धारणा के साथ यह आयोजन पूरा हुआ । नूतन कला निकेतन में धर्म सभा को संबोधित करते हुए श्री विराग मुनि ने कहा मेरे इस तप के पीछे बहुत से लोगों ने पवित्र पुरुषार्थ किया है मैं उन सभी का धन्यवाद करता हूं उन्होंने कहा हर किसी श्रावक-श्राविकाओं को अपने सामर्थ अनुसार स्वधर्मि सेवा का लाभ हमेशा लेना चाहिए स्वधर्मी भाइयों को ऊंचा उठाना हमारा कर्तव्य है और इस दिशा में सभी को सहयोग करना चाहिए।

तपस्या तो बहुत होती है पर ऐसी तपस्या यदि हो तो वह देवत्व और चमत्कार से कम नहीं है खतरगक्षआचार्य श्री मणीप्रभ सुरिश्वर ने विराग मुनि जी को तप चक्रवर्ती की पदवी से यूं ही अलंकृत नहीं किया है नही कहा है

171 उपवास की तपस्या में 1000 से ज्यादा किलोमीटर का पदयात्रा

171 उपवास की तपस्या में दिनों तक निर्दोष गोचरी लाने का कार्य

171 उपवास की तपस्या में दिनों तक जिनवाणी सुनाने का कार्य
171 उपवास की तपस्या में 171 से ज्यादा शहर और गांव में जिन शासन की प्रभावना

171 उपवास की तपस्या में कई मंदिर की प्रतिष्ठा दीक्षा आदि में पावन सानिध्यता

171 की तपस्या में शुद्ध क्रिया से संयम की खुशबू महकाना

171 उपवास की तपस्या में निरंतर गुरु सेवा की पूर्णता कार्य

171 उपवास से भी ज्यादा जा सकते थे पर भगवान महावीर की तपस्या से आगे नहीं बड़ने का निर्णय
जिन शासन की सेवा में लगातार हर पीढ़ी को जोड़ने का कार्य आपने किया और परमात्मा महावीर का मार्ग बताया जिसकी आज खूबअनुमोदना हो रही है

1 मई 1914 वैशाख सुदी दूज के दिन आपने दीक्षा ग्रहण कर संयम साधना करते हुए निर्विघ्नं तप साधना प्रारंभ कर दी जैन दर्शन में होने वाले लगभग तप आपने कर लिए हैं
अभी वर्तमान में रत्नावली कंदावली तब की आराधना प्रारंभ है इसमें एक उपवास फिर पढ़ना पारणा दो उपवास फिर पारणा इस तरह से 16 उपवास तक की तपस्या चलती है और यह तप और यह तपस्या लगभग साडे 5 माह तक गतिमान होती है यह तपस्या अभी वर्तमान में श्री विराग मुनि जी की गतिमान है इन्होंने पारणा ना करते हुए इस तपस्या को चालू रखा और आज 171 की उपवास पूर्ण हो चुका है
जिस तरह भगवान महावीर अभिग्रह लेकर तपस्या करते थे उसी तरह श्री विराग मुनि जी महाराज अभिग्रह लेकर तपस्या प्रारंभ की थी जो आज तक चल रही है गुप्त रूप से तपस्या करने वाले महान साधक श्री विराग मुनि जी अभिग्रह फलीभूत हो चुके हैं।वर्षीतप उपधान तप सिद्धि तप उपवास एकासना आयबिल तेला अठाई पन्द्रह की तपस्या दिन में दो बार सिर्फ गरम पानी पीकर यह कठिन तपस्या गुरु भगवन तो के आशीर्वाद से निर्विघ्नं कर रहे हैं 171 उपवास की तपस्या के उनके दर्शन वंदन के लिए देश के विभिन्न शहरों से गुरु भक्त परिवार बालाधाट आए हैं
धन्य है ऐसे माता-पिता जिन्होंने जिनशासन के ऐसे लाल को जन्म दिया है हम सभी गुरु भक्त परिवार उनकी तपस्या शीघ्र निर्विघ्नं संपन्न हुई अरिहंत परमात्मा के प्रति आभार समर्पण हे
आज के इस आयोजन भव्य आध्यात्मिक आयोजन में दुर्ग भिलाई रायपुर राजनांदगांव बैतूल भोपाल नागपुर चंद्रपुर पाली सहित देशभर के विभिन्न क्षेत्रों से उपभोक्ता परिवार बड़ी संख्या में पहुंचे थे

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