दुर्ग |
गरीबों को भूखे पेट ना सोने देने की मंशा से शुरू की गई सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) अब खुद सवालों के घेरे में है। दुर्ग जिले में लगभग 10 लाख किलो चावल एक ही रात में सरकारी रिकॉर्ड से ‘गायब’ हो गया, लेकिन प्रशासनिक कार्रवाई केवल 6 दुकान संचालकों के निलंबन और 1 एफआईआर तक ही सिमट कर रह गई है।
पीडीएस प्रणाली के तहत केंद्र व राज्य सरकार द्वारा गरीबों को रियायती दर पर खाद्यान्न उपलब्ध कराया जाता है। लेकिन हाल ही में दुर्ग जिले के विभिन्न राशन दुकानों में चावल की मात्रा एक ही दिन में हजारों किलो से सीधे शून्य हो गई। जब शासन के अधिकृत पोर्टल में इसका सत्यापन किया गया, तो आंकड़ों में यह गंभीर विसंगति सामने आई।
सिर्फ कुछ पर कार्रवाई, बाकी को ‘समूह’ में संलग्न कर छूट?
दुर्ग जिला खाद्य विभाग द्वारा इस पूरे मामले में केवल एक दुकानदार पर एफआईआर दर्ज की गई है, जबकि छह दुकानदारों को निलंबित किया गया है। शेष को मात्र अन्य स्वयंसेवी समूहों में संलग्न कर दिया गया, जिससे विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठते हैं।
विशेषज्ञों की मानें तो, जब चावल की भौतिक सत्यापन प्रक्रिया अप्रैल माह के पहले सप्ताह में हो चुकी थी, तब इतने महीनों बाद भी विभाग द्वारा न तो 10 लाख किलो चावल के नुकसान की राजस्व वसूली (38.77 रुपये प्रति किलो के हिसाब से) की गई है और न ही दोषी समूहों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई की गई है।
सेवा निवृत्त होने वाले अधिकारी पर टिकी निगाहें
फिलहाल जिला खाद्य अधिकारी के प्रभार में जो अधिकारी कार्यरत हैं, वे 30 जून को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या वे सेवा समाप्ति से पूर्व इस मामले में कठोर एवं निष्पक्ष कार्रवाई कर एक मिसाल पेश करेंगे, या फिर यह मामला भी अन्य मामलों की तरह फाइलों में दब कर रह जाएगा?
लोकतंत्र और जवाबदेही की कसौटी पर विभाग
शासन और संविधान यह मानते हैं कि किसी भी सार्वजनिक संसाधन में गड़बड़ी या लापरवाही की जवाबदेही न केवल संचालनकर्ताओं की होती है, बल्कि उन अधिकारियों की भी जो इन पर निगरानी करने के लिए नियुक्त हैं। इस प्रकरण में विभाग की तीन महीने की चुप्पी, राजस्व वसूली का अभाव और सीमित कार्रवाई, विभागीय निष्क्रियता या फिर प्रशासनिक मिलीभगत का संकेत देती है।

विशेष टिप्पणी:
यदि शासन इस गंभीर विषय पर कड़ी कार्रवाई नहीं करता, तो यह न केवल हजारों गरीब परिवारों के हक को मारने वाला होगा, बल्कि पीडीएस जैसे कल्याणकारी तंत्र की साख को भी गहरा आघात पहुंचाएगा।
