नगर निगम प्रशासन इन दिनों सवालों के घेरे में है। आयुक्त सुमित अग्रवाल की कार्यशैली को लेकर चर्चा तेज है। आरोप है कि शिकायतों के निपटारे में वे भेदभावपूर्ण रवैया अपना रहे हैं। सूत्रों के अनुसार निगम के सहायक ग्रेड-3 भूपेंद्र गोईर को मात्र 90 दिनों में 11 नोटिस थमा दिए गए। खास शिकायत पर त्वरित जांच आदेश जारी कर दिए गए जबकि अन्य शिकायतें महीनों से फाइलों में दबी पड़ी हैं। प्रदेश में चल रहे सुशासन तिहार अभियान पर भी सवाल खड़े हो गए हैं। कई शिकायतकर्ता आरोप लगा रहे हैं कि उनकी शिकायतें पोर्टल से गायब कर दी गईं या फिर “निराकरण” दिखाकर झूठी रिपोर्ट चढ़ा दी गई। वहीं चुनिंदा मामलों पर त्वरित कार्रवाई कर निगम प्रशासन की पीठ थपथपाने की चर्चाएँ गरम हैं। निगम में अब खुली चर्चा है कि आयुक्त अग्रवाल की ‘चयनित कार्रवाई’ नीति का मामला सीधे हाईकोर्ट पहुँच चुका है। कोर्ट में विचाराधीन होने से यह मुद्दा और ज्यादा संवेदनशील बन गया है। कर्मचारियों और नागरिकों का मानना है कि अगर निष्पक्षता नहीं दिखी तो शासन की विश्वसनीयता पर चोट लगना तय है। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय सुशासन का दावा कर रहे हैं और नगरीय निकाय मंत्री अरुण साव पारदर्शिता व जवाबदेही की बातें कर रहे हैं, लेकिन निगम स्तर पर हो रही चयनित कार्रवाई इन दावों की हकीकत उजागर कर रही है। आरोप सही साबित हुए तो यह सरकार की नीतिगत छवि पर सीधा धक्का होगा। नागरिक और कर्मचारी अब यही उम्मीद लगाए बैठे हैं कि उनकी भी शिकायतों पर निष्पक्ष जांच हो और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाए, क्योंकि सवाल यही है कि क्या निगम प्रशासन खुद को जवाबदेह और पारदर्शी साबित कर पाएगा या यह विवाद सरकार की साख को और कमजोर करेगा।
